Shri Radhavallabh Mandir Vrindavan | Radha Vallabh Story in Hindi
Shri Radhavallabh Mandir vrindavan
Shri Radhavallabh Mandir Vrindavan |Radha Vallabh Story in Hindi
Shri Radhavallabh Mandir Vrindavan
Shri Radhavallabh Mandir Vrindavan का बहुत ही प्राचीन मंदिर मन जाता है, यह मंदिर श्री बांकेबिहारी जी मंदिर के निकट है | सर्वप्रथम निजहित श्री हरिवंश जी गोस्वामी महाप्रभु के द्धारा श्री राधाबल्लभ जी के विग्रह को स्थापित किया था |
( प्रकट ) श्रीहित जी का जन्म बाद गांव में हुआ था | जो की जिला मथुरा में आता है, श्री हितहरिवंश जी के पिता एक राजा के राजगुरु के व्यास जी थे इस लिए जहा राजा रहता था वहीं श्रीहित हरिवंश जी रहा करते थे |
इनका जीवन काल शादी विवाह, बालकों का पालन पोषण देवन्द गांव जो की सहारनपुर जिले में आता है | श्रीहित हरिवंश जी के शरीर में भाव भक्ति के गुण रोम – रोम में थे | जब उन्होंने वृन्दावन जाने की बात कही |
उनकी धर्म पत्नी ने मन किया कि वहां तो घोर जंगल है वहाँ जाकर क्या करोगे | वैसे तो श्री हरिवंश के तीन पुत्र व एक कन्या थी परन्तु फिर भी ग्रस्त आश्रम को छोड़कर उन्होंने श्री धाम वृन्दावन की ओर प्रस्थान किया |उनके साथ और भी भक्तगण थे चलते चलते वह सभी एक गांव किनारे रुक गए और वहीं विश्राम किया |
और तभी श्री हितहरिवंश जी को श्री राधारानी जी ने स्वप्न दिया | और कहा कि आप जिस भक्ति की डगर पर जा रहे हो वहाँ तो घोर जंगल है वहाँ किसके सहारे भजन करोगे,
अतः आप मेरा व मेरे प्राण बल्लभ जी का विग्रह एक ब्राम्हण के घर विराजमान है आप उस विग्रह को वृन्दावन ले जाकर विराजमान करें |
तभी श्रीराधारानी जी ने उस ब्राम्हण को भी स्वप्न दिया और कहा अब आप हमें विदा करें | हम आपकी सेवा से प्रसन्न है |
अतः प्रातः काल श्री हितहरिवंश जी ब्राम्हण के घर पहुंच कर ब्राम्हण से आग्रह करने लगे और कहा की ब्राम्हण देव हम श्री राधाबल्लभ जी के विग्रह को लेने आये है | आप हमको देने की कृपा करें |
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ब्राम्हण ने कहा कहा हे स्वामीजी में आपको विग्रह तो दे दूंगा परन्तु आपसे एक निवेदन है कि आपको मेरी दोनों पुत्रियों के साथ विवाह करना पड़ेगा इस बात को सुनकर श्रीहरिवंश जी ने कहा कि में खुद अपना ग्रस्त छोड़कर आया हूँ ग्रस्त तो मेरी भक्ति में बाधा बनेगी तो ब्राम्हण ने कहा नहीं मेरी बेटी आपको भक्ति में सहायक होगी
तभी विधि विधान से ब्राम्हण ने विवाह करके अपनी दोनों पुत्रियों को विदा किया |और श्री राधाबल्लभ जी को दहेज़ में दे दिया |सभी को गाजे बांजे के साथ विदा किया और साथ में सभी भक्तगण थे |
दोहा : दोहू डोला और पालकी और प्रभु का चहुँ डोल
Shri Radhavallabh Mandir Vrindavan
यमुना किनारे मदन टेर नाम के एक ऊचे टीले पर प्रथम बार विग्रह को डोले में से निकाल उस टीले पर सफाई करके और यमुना जल से शुद्ध करके श्री राधाबल्लभ जी को विराजमान किया उस समय इस वृन्दावन में केवल जानवरो का निवास था उसी जंगल में हरिवंश जी ने भक्ति की शुरुआत की |
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Context – प्रसंग
वृन्दावन में एक निरवाहन नमक डकैत था | जो कि यमुना जी के मार्ग से जाने वाले व्यापारियों को लूटता था और धन को लूटकर मार देता था और यमुना जी में फेंक देता था | उस समय केवल यमुना जी आने वाले व्यापारियों राजाओं का मार्ग था | जब नरवाहन डकैत को पता चला कि बारात की तरह कुछ लोग वृन्दावन आये है तो डकैत ने अपने साथियो को भेजकर श्रीहरिवंश जी को और धन को लूटने का आदेश दिया वह सब सुनकर चल दिए तो देखा मदन टेर पर देखा सभी लोग भगवान का कीर्तन कर रहे है |
उनके आस-पास शेर, भालू , हिरन, पंछी कुछ मोर पपीहे साथ – साथ बैठे हुये हैं यह देखकर डाकू लौट गए उन्होंने नरवाहन से कहा की आप ही जाकर लुटे हमारे बस की बात नहीं है | तभी नरवाहन घोड़े पर सवार होकर मदन टेर के लिए चल दिया वहाँ पहुंचकर अपने घोड़े से उतर के चलने लगा
तो अचानक वह अपने शस्त्र नीचे पटकते हुए अपने हीरे जड़ित जूतियो को उतारके और अपने भरी वस्त्र उतारते हुए आगे बढ़ने लगा और सभी को देखकर आश्चर्य में पड़ गया और श्रीहित हरिवंश जी को अपनी क्रोधित आँखों से देखने लगा तो हरिवंश जी ने कहा आप मुझे क्या देखते हो मेरे श्रीराधाबल्लभ जी को देखो | उसकी निगाह जैसे ही पड़ी तो उसके मन में एक भाव उत्पन्न हुआ और वह दंडवत करने लगा |
और कहने लगा, हे भगवान ! मुझे माफ़ कारों मुझसे गलती हो गयी अब आप मुझे सेवा का मौका दें | तो श्री हरिवंश जी ने कहा कि नहीं हमें आपकी सेवा की जरुरत नहीं है नरवाहन जिद्द करने लगा और उसने कहा की इस वृन्दावन और बृजवासियों पर मेराधिकार है |
अतः आपको में इस मदन टेर नामक स्थान को दान देता हूँ | और में आपका शिष्य हूँ और आपको गुरु दक्षिणा में इस जमीन को दान देता हु | और उसी स्थान पर भगवान श्री श्री राधाबल्लभ जी को विराजमान किया तथा पेड़ और लता- पताओ से एक मंदिर की तरह सजावट की जाती थी |
कालांतर के बाद एक राजा के यहा सुन्दर दास कास्थ खजांची के पद भार पर नियुक्त था वह दर्शन करने आया करता और जयकारा लगता था ! राधाबल्लभ दर्शन दुर्लभ यही जयकारा लगाता वह कई बार मन में सोचता कि में एक मंदिर का निर्माण करवाऊ उसके मन में विचार आया
और वह राजा के खजाने में से जवाहरात हीरे निकलता रहा और इन्हे बेचकर मंदिर का निर्माण करवाने लगा कुछ लोगो ने राजा से सुन्दर दास की चुगली की | आपका खजांची आपके खजाने में से जवाहरात बेचता है | अतः राजा ने सुन्दर दास को अपने महल में बुलाया और कहा कि आप खजाने से जवाहरात निकलकर बेचते हो उस धन का आप क्या करते हो |
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क्या यह बात सही है | यह सुनकर सुन्दर दास ने कहा हां महाराज यह बात सही है | मैं उस धन को वृन्दावन धाम में एक मंदिर का निर्माण करवा रहा हु | यह बात सुनकर राजा ने कहा ऐसा मंदिर बनवाओ कि लोग देखते रह जायें |
जितना धन चहिये खजाने से ले जाना और सुन्दर मंदिर बनवाना ऐसा मंदिर वृन्दावन में न बने, जब मंदिर बन गया तो विग्रह श्री राधाबल्लभ जी को वहाँ पर स्थापित किया यह दूसरा स्थान था |
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कुछ समय बाद औरंगजेब ने मंदिर देखा तो दुःख प्रकट करने लगा और आदेश दिया कि मंदिर को तोड़ दिया जाये उसका क्रोध इस तरह था कि मिटटी को भी निकालकर के फेंक दिया परन्तु गोस्वामी समाज के लोगो ने कामा ( राजस्थान ) में सौ वर्ष तक श्रीराधाबल्लभ जी की पूजा सेवा होती रही |
उसके बाद फिर गोस्वामी समाज ने लगभग ३०० वर्ष पहले वृन्दावन में आकर श्रीबाँकेबिहारी जी के मंदिर के निकट गोस्वामी समाज ने श्रीराधाबल्लभ जी के विग्रह की स्थापना की और धीरे – धीरे मंदिर बनबाया समय के अनुसार यह मंदिर श्री राधाबल्लभ जी का निज निवास बन गया, यह चौथा स्थान था |
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अब वर्तमान में घने बाजार के बीचो बीच टेड़े मेड़ी कुञ्ज गलियों में यह सुन्दर मंदिर स्थापित है, इस मंदिर की सेवा गोस्वामी श्रीहितहरिवंश समाज की पीढ़ी दर पीढ़ी पारिवारिक लोग सेवा करते है | प्रतिदिन समाज गायन की परंपरा को निभाते है |
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मंदिर का समय (Temple Timings)
गर्मी में :- मंगला आरती : 5:00 AM सुबह मंदिर खुलता है:- 7:00AM to 12:00PM
सांयकाल: 06:30PM to 9:00PM
ठण्ड में :मंगला आरती : 5:30 AM सुबह मंदिर खुलता है:- 7:00AM to 12:00PM
सांयकाल:06:30PM to 8:30PM
” एक बार प्रेम से बोलिये श्री राधाबल्लभ लाल की जय ”
Shri Radhavallabh Mandir Vrindavan
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