Vrindavan Ki Mahima ।। Untold Story Of Vrindavan
“एक बार प्रेम से बोलिये श्री वृन्दावन धाम की जय”
Vrindavan Ki Mahima: श्री राधाकृष्ण जी का मन ही मन स्मरण करते हुए उन प्रिया प्रियतम की रास विहार स्थली कोई मामुली स्थान तो नहीं हो सकती। जहाँ साख्यात परब्रह्म तीनों लोको के स्वामि स्वयं श्री माँ लक्ष्मी जी श्री राधारानी जी नाम से अवतरित होकर अपनी लीलाओं को अवतरित कर, निज वृन्दावन धाम में चरण कमल से शुद्ध किया।
ऐसे निज धाम की हम तुच्छ मनुष्य जीव ब्रज धाम श्री गोलोकवास धाम की क्या व्याख्या कर सकते हैं। परन्तु इस बृजधाम श्री वृन्दावन धाम में जन्म लेकर हर मनुष्य-प्राणी हर जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, नदियाँ बृज के कण कण में श्री प्रियाप्रियतम का निजनिवास हो तथा ऐसे स्थान पर जीव धन्य है।
Vrindavan ki Mahima (Untold Story Of Vrindavan): इस वृन्दावन धाम का सौन्दर्य का प्रसार है श्रीराधा वृन्दावन है। श्रीकृष्ण ही वृन्दावन है, श्रीविष्णु ही वृन्दावन है, श्रीलक्ष्मी ही वृंदावन है, जहाँ तीनों लोको के स्वामि विराजमान है वही वृन्दावन है। वृन्दावन का हर कण कण तो राधा जी और भगवान श्री कृष्ण है।
इस धरती माता पर अवतरित गोलोक धाम ही वृन्दावन धाम है। जिसकी जितनी व्याख्या की जाये उतनी ही कम है, जिसकी सुन्दरता के अंश को करोडो करोडो शब्दों में भी पूर्ण नहीं किया जा सकता है।
यह वृन्दावन धाम 24 कोस में फैला हुआ था। वर्तमान में जीव जन्तु मनुष्य तथा भगवान की संरचना के अनुसार अलग अलग लीलाओं के अनुसार वर्तमान में स्थापित है।
Why Did Vrindavan Name..? वृन्दावन नाम क्यों पड़ा ..?
Story Behind The Name Vrindavan: सतयुग में राजा केदार सात दिपों के महाराज कहलाये जाते। तथा वह बड़ी धार्मिक प्रर्वत्ती दयालु स्वभाव के थे। उनकी बेटी का नाम वृन्दा (Vrinda Devi) था। समय के अनुसार वृन्दा देवी शादी के योग्य हो गई परन्तु बचपन से ही भगवान कृष्ण की भक्ति मैं लीन थी तथा विवाहित जीवन से परे थी अपने परे जो पूज्यनीय थी दुर्वाशा मुनि से श्रीहरि मत प्राप्त कर साठ हजार वर्ष तपस्या की।
तब वृन्दादेवी की भक्ति से खुश हो कर भगवान श्री कृष्ण ने वृन्दादेवी को साख्यात दर्शन दिये तथा मनवांछित फल पाने का आग्रह किया। यह सुनकर वृन्दादेवी अत्यंत प्रसन्न हुई और कहा- कि हे प्रभु में सदा आपके पास नियमित दर्शन तथा आपके नामों का अनुसरण करती रहूँ।
तब प्रभु ने प्रसन्न होकर अपने नाम के साथ वृन्दावन देवी का नाम बताया। और कहा कि- जब कलयुग में जन प्राणी मेरे भक्त गढ़ मेरा नाम स्मरण करेंगें तो आपका नाम स्मरण करेंगे तथा अब वह श्री राधारानी ब्रज कि पालन हार के समान ही अति सौभाग्यशाली गोपिका हुई। आज वृंदा देवी का मंदिर नन्दगाँव के पास स्थित है। बताते है कि सभी लोकों के ऊपर श्री गोलोक धाम है और श्रीवृन्दावन के नाम से जाना जाता है।
श्री राधाकृष्ण की लीला के समय यह वृन्दावन कमल के फूल की तरह खिला हुआ था जिसमें आधुनिक रोशनी नहीं बल्कि समस्त प्रकृति की जगमगाती रोशनी (पूर्णिमा की दुधारी रात) अनेक प्रकार के रत्नों नगों से सजा हुआ।
अनेक प्रकार के सुन्दर पक्षी कामधेनु गाय तथा अनेक छोटे-छोटे बछड़े, अनेको प्रकार के सुगन्धित पुष्पों के बाग तथा उनके किनारे बहती निर्मल श्रीयमुना जी तथा उनके बहने की अनोखी मधुर आवाज अनेकों प्रकार के आनन्दों की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। परन्तु श्री भगवान कृष्ण राधारानी की छवि को मन में बिठाकर उस आनन्द में डूब सकते हैं।
इस ब्रज मण्डल अधर कमल पर विराजित है इस सुन्दर परम पूज्यनीय श्रीवृन्दादेवी ने इस गोलोक धाम में विराजमान होकर मन भावन दृश्य को इस कलयुग में दिव्य स्थान माना है। इस ब्रज में भगवान कृष्ण ने श्रीराधारानी ने अपनी लीलाओं को गौचरण भूमि के समय जो भी लीला करी वह वृन्दावन में की। वर्तमान समय में मथुरा से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ आज भी राधाकृष्ण की लीलाओं के चिन्ह विराजमान है।
Prem Mandir Vrindavan – प्रेम मन्दिर
अनन्त कोटी में प्रसन्सा, गुणगान, भाव प्रकट किया जाये तो हर जीवन प्राणी के बस की बात नहीं है श्रीवृन्दावन धाम की व्याख्या तो केवल पुर्नजन्म की पुण्य आत्मा ही प्रकट कर सकती है।
वृन्दावन तो त्रिलोकीनाथ बैकुण्ठ निवासी लक्ष्मीपति श्री हरिविष्णु का निवास स्थान है व निजग्रह माना जाता है। बृज की सुन्दरता को मन में प्रकट करते हुए इसे ही श्रीकृष्ण स्वरूप माना जाये ते कोई असम्भव बात नहीं है।
Story of Tirth Raj (Prayag)-
एक समय प्रयागराज ने देवर्षि नारद के समक्ष बात रखी कहा कि सभी तीर्थो ने मेरा स्वागत सत्कार किया परन्तु वृन्दावन धाम ने अभी तक मुझे कोई भेट नहीं दी भगवान ने मुझे तीर्थ राज पथ पर विराजित तो किया किन्तु मुझे इस विषय में कुछ संका है व जब की वृन्दावन धाम भी इन तीर्थो की तरह माना जाता है। तब नारद जी ने कहा फिर तुम तीर्थ राज कैसे हुये ?
यह बात सुनकर तीर्थराज बैकुण्ठ निवासी श्रीहरि विष्णु के समक्ष अपनी बात रखी और कहा कि सब तीर्थ आकर मुझे भेंट व सादर सत्कार करते हैं किन्तु वृन्दावन नहीं आते। तब भगवान श्रीहरि विष्णु ने कहा (Vrindavan Dham) तो मेरा निज ग्रह तथा मेरे ह्रदय की भांति है।
और मैंने आपको तीर्थो का राजा बनाया है ना कि अपने घर का जिस वृन्दावन निज ग्रह मेरी प्राण बल्लभा श्रीराधा निवास करती हैं तब प्रयाग राज ने स्वीकार किया और भगवान को नतमस्तक करते हुये Vrindavan Dham (वृन्दावन धाम) को श्रेष्ठ मानकर नमस्कार किया।
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