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Nidhivan Temple | Top secret story of Nidhivan Temple

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Nidhivan Temple

The secret story of Nidhivan Temple

Nidhivan Temple The Secret Story Of Nidhivan

इस धरती पर एक रसिक का जन्म हुआ वह परम रसावतार “श्री श्री स्वामी हरिदास जी” महाराज हुए। उन्होंने मेरे नटखट श्री बांके बिहारी जी को प्रकट कर इस संसार में प्रेमरस और भक्ति की एक अनोखी मिसाल पेश की है। उनके प्रेम और भक्ति की वजह से ही मेरे प्रिया – प्रियतमा श्री राधाकृष्ण स्वामी जी की भक्ति से प्रसन्न हो कर ही निज महल (श्री निधिवन) में अवतरित हुए।

सबसे पहले बात करते है स्वामी श्री हरिदास जी के जीवन  के बारे में-

श्री स्वामी हरिदास जी महाराज इस धराधाम में सन् 1534 में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को समय अवतरित हुए थे जब ब्रज में श्री राधारानी जी का जन्म महोत्सव मनाया जा रहा था। उनके पिता प्रसिद्ध रसिक शिरोमणि श्री आशुधीर जी महाराज थे और उनकी माता का नाम श्री गंगा देवी था, ये सारस्वत ब्राह्मण थे यह परिवार पंजाब के मुल्तान प्रदेश का निवासी था।

परन्तु ब्रिज – प्रेम में वशीभूत होकर आशुधीर जी महाराज ब्रिज की ओर बस गए। वही श्री हरिदास जी महाराज का जन्म हुआ। उनके गाओ का नाम हरिदासपुर था, यहाँ स्थान अलीगढ के पास खैर  मे पड़ता है। यहाँ पर एक प्रसिद्ध खैरेश्वर  शिव मंदिर है। इसी गाँव में स्वामी श्री हरिदास जी के भाई श्री जगन्नाथ जी एवं श्री गोविन्द जी का जन्म हुआ।

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श्री स्वामी जी ने समस्त धनधाम का परित्याग कर  श्री स्वामी हरिदास जी ने अपने परम् पूज्य पिताजी आशुधीर जी से दीक्षा लेकर वृन्दावन को प्रस्थान किया सन् 1560 में श्री धाम वृन्दावन एक भरपूर वन था। स्वामी हरिदास जी ने वृन्दावन प्रकाशित किया और यहाँ परम् विलक्षण रस  रिति का श्रवण किया इन कुञ्ज लताओं के बीच ही स्वामी जी ने मेरे बांकेबिहरि जी को प्रकट किया। इसलिए मेरे बांकेबिहारी जी को कुंजबिहारी भी कहते है।

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श्री स्वामी हरिदास जी महाराज नित्य निकुंज लीलाओ में ललित स्वरुप है। वे नित्य बिहारी जी के प्रेम में रसमग्न रहकर प्रिया प्रियतमा का आभास करते हुए , उन्ही के लिए संगीत गान करते थे। इस स्थान पर भक्ति करने का आधार केवल प्रिया – प्रियतमा के सभी भक्तो को को दर्शन हो सके तथा अन्य रसिक जी की प्राथना पर कुञ्ज बिहारी जी महाराज के दिव्य विग्रह को निधिवन से प्रकट किया।

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जिस समय प्रकाश गुफा से, श्री बिहारी जी महाराज प्रकट हुए उस समय प्रिया- प्रियतम मुस्कुराते हुए अनंत रूप, राशि, उज्वल प्रभा सौन्दर्य जगमगा रहा था। प्रिया – प्रियतम के उस अपूर्व रूप का दर्शन कर उपस्थित जन धन्य हो गए तभी स्वामी हरिदास जी ने प्रिया जी से कहा आपके सौन्दर्य को लोक सहन नहीं क्र पायेगा। अतः आप दोनों एक के ही रूप में प्रकाशित होकर दर्शन  दीजिये।

स्वामी हरिदास जी के प्राणराध्य लाड़ले ठाकुर है, इसीलिए स्वामी जी के आग्रह पर प्रिया- प्रियतम श्री बांकेबिहारी जी के विग्रह में समाहित हो गए। ये दिव्य स्वरुप है, रास रूप है, वह सदा के लिए इनका हो जाता है। आज श्री  धाम वृन्दावन में लाखो साधु व भक्तजन आते है। इनका नाम लिए आते है और दर्शन करते है वह भाग्यशाली होते है वैसे तो लाखो यात्री आते है परन्तु मन में भाव भक्ति वाले यात्री बहुत काम आते है जायदातर यात्री घूमने के विचार से आते है जिसके मन में भाव होता है उन्हें ही दर्शन मिल पाते है।  

अब इस स्थान पर प्रिया-प्रियतम की श्रृंगार स्थली है। छोटी-छोटी, टेडी-मेडी, लताओं के बीच श्री स्वामी हरिदास जी का स्थाई स्थान है।आशुधीर जी महाराज का स्थाई स्थान है। श्री राधा जी वंशी बजाते हुए मूर्ति के दर्शन है। इसमें एक  प्राचीन कुंड भी है लताओं, पताओ के बीच कुञ्ज गलिया घुमाबदार रास्ते भक्तो का मन मोह लेते है।

इन लताओं को गोपिया का स्वरुप माना गया है तुलसीवन तथा आज इस को हम निधिवन के नाम से पुकराते है। जहां भगवान श्री बांकेबिहारी जी का प्राकट्य स्थल कहलाता है तथा बीच में रासमण्डल कहलाता है जहा आज भी प्रिया-प्रियतमा आज भी रास करते है।

 

वृन्दावन सो वन नहीं , नन्दगांव सो गांव ।

वंशीवट सो वट नहीं, श्रीकृष्ण नाम सो नाम । ।  

 

भई री सहज जोरी प्रकट भई जुरंग की गौर श्यामघन- दामिनी

जैसे प्रथम हूँ हुती अवहुं आगे रहिहै न टरि है तैसे ।  

अंग-अंग की उजराई सुधराई चतुराई सुंदरता ऐसे

श्रीहरिदास के स्वामी श्याम-कुंजबिहारी सम वैसे । ।

 

Maharaas

उस समय श्रीराधा कृष्णा जी ने ( वैसाख ) के माह में माधवी लताओं से व्याप्त वृन्दावन में रासेश्वर माधव ने स्वयं रास का आरम्भ किया, वैसाख माह की कृष्णा पक्षीय पंचमी को जब सुन्दर चंद्रोदय हुआ उस समय श्याम सुन्दर ने यमुना के किनारे उपवन में रासेश्वरी श्रीराधाजी के साथ रास विहार किया।

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वृन्दावन भी दिव्यरूप  धारण करके काम पूरक कल्पवृक्ष तथा माधवी लताओं से समलंकृत हो अपनी शोभा से वृन्दावन को अति शोभा के पात्र बनाया अनेक प्रकार के पुष्प लताऐं गिरिराज जी की तलहटी में तो वायु के स्वर की मधुर-मधुर ध्वनि शरीर के रोगटों को खड़ा करने वाला दृश्य मोर पपियाओ तोता, मैना  तथा श्रीयमुनाजी का कलरव मन को मुग्ध कर  रहा था।

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ऐसे श्रीवृन्दावन धाम में श्री प्रिया प्रियतम ने रास किया इस वृज धाम की आलोकिक माया की व्याख्या को विस्तार पूर्वक समझाना हम जैसे जिव के भाग्य में कहाँ उनकी लीला तो मात्र पूर्व जन्म का संस्कार ही कल्पना करा सकता है।

बड़े-बड़े महामण्डलेश्वर इस वृज में आये। जो की वृज को अपनी पहचान दे गए। जिनके दर्शन दुर्लभ थे जो भगवान के निकट थे  उन महान संतो को मैं मनोज सैनी साष्टांग दण्डवत् करता हूँ।

 

 

 


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