Vaishno Devi Temple, Vrindavan
Vaishno Devi Temple, Vrindavan
” जय माता दी भक्तों “
Vaishno Devi Temple, Vrindavan (वैष्णों माता मंदिर वृन्दावन) यह मंदिर आगरा दिल्ली रोड पर छटीकरा चौराहे के पास वृन्दावन में है | इस मंदिर के मुख्य अध्यक्ष श्री जे.सी. चौधरी है | माता रानी की इन पर अति अपार कृपा है मातारानी ने स्वयं इनको स्वपन देकर कहा कि मेरा विशाल मंदिर का निर्माण कराओ, जे.सी. चौधारी वैसे तो कई बार वृन्दावन आये और कई बार वैष्णो देवी जम्मू दर्शन करने गए थे |
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परन्तु श्री जे.सी. चौधरी जी को सबसे सुन्दर स्थान केवल और केवल श्री धाम वृन्दावन ही लगा | वृन्दावन में बड़ी कोशिश करने के बाद यह स्थान मिला | और इन्होने 2001 में इस मंदिर का शिलान्यास किया और 22 मई 2010 में मंदिर का उद्घाटन किया |
इसका उद्घाटन बड़ी धूम-धाम पूर्वक मनाया गया जिस में हजारों लोगों की भीड़ एकत्रित हुई जो लोग इस मंदिर को देखते तो देखते ही रह जाते मंदिर में साफ़-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है |
अस्टधातु धारी शेरावाली माता की विशाल मूर्ति की लम्बाई जमीन से 70 फ़ीट के लगभग है तथा दायी तरफ विशाल हनुमान जी की मूर्ति है | इस मूर्ति का राजस्थान के कारीगरों ने तथा दक्षिणी लोगों ने इस ढंग से बनाया है कि इनका अनोखा रूप देख कर मानों कि मातारानी अपने भक्तों से कुछ कहना चाहती है |
मूर्ति विशाल ऊंचाई होने के कारण आस-पास के आने-जाने वाले राहगीर व तीर्थयात्री अपने आप को रोक नहीं पाते और दर्शन करने आते है |
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मंदिर के निचले परिसर में एक बहुत लम्बी गुफा है जिसमें बहुत ही आकर्षक लाइट की व्यवस्था के साथ-साथ माता रानी नौ रूपों की परम अलौकिक झांकिया भक्तो के मन को मोह लेती है और साथ में भजनों का संगीत हर किसी यात्री को मंत्र-मुग्ध कर देती है |
इस तरह भक्तगण भी मातारानी के नामों का जयकारा लगाते हुए दर्शन करते हुए आगे बढ़ जाते है | और गुफा से बाहर निकलते हुए मातारानी की विशाल प्रतिमा के पास से परिक्रमा करते हुए मंदिर के बीचों-बीच स्थापित एक अष्टधातु से बनी माता शेरोवाली के दर्शन करते हुए माता जी की परिक्रमा करते हुए |
मंदिर परिषर की दीवारो पर बनी अनोखी व अद्भुत कलाकृतियों को देखते हुए बाहर दायी ओर गंगा माता तथा बाई ओर श्री यमुना जी की बहुत ही सुन्दर और मनमोहक मूर्तियों को देखकर मन प्रसन्न और एक अलग ही प्रकार का उत्साह मन में होने लगता है | और मन भक्ति में सराबोर हो जाता है |
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इसी तरह मंदिर परिसर में माता रानी के नौ रूपों की स्थापना मंदिर की गुफा में की गई है | जिसे देखकर हर भक्त नत-मस्तक हो कर भाव-भिभोर हो जाते है
मंदिर परिसर में मातारानी के नौ रूप इस प्रकार है-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
- माँ शैलपुत्री
- माँ ब्रम्हचारणी
- माँ चन्द्रघण्टा
- माँ कूष्माण्डा
- माँ स्कन्द माता
- माँ कात्यायनी
- माँ कालरात्रि
- माँ महागौरी
- माँ सिद्धिदात्री
मातारानी की निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है, और सभी नाम ग्रहण करती है। माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही हर भक्त के जीवन का परम उद्देश्य है। असीम आनन्द और हर्षोल्लास के साथ मातारानी के इन्हीं नौ स्वरूपों की नवरात्रि पर्व पर पूजा की जाती है |
‘दुर्गा’ अर्थात वह शक्ति जो आपको असंभव परिस्थियों को पार करने में सहायता करती हो | जो कुछ भी आपको कठिन और असम्भव लगे उसके लिए माँ दुर्गा से प्रार्थना करनी चाहिए | माँ दुर्गा, आपको दुखों के समंदर से दूर, आत्मा में स्थित करती हैं |
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मां दुर्गा के नौ रूप क्यों हैं?
यह भौतिक नहीं, बल्कि लोक से परे आलौकिक रूप है, सूक्ष्म तरह से, सूक्ष्म रूप। इसकी अनुभूति के लिये पहला कदम ध्यान में बैठना है। ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। ईश्वर के विषय में न सोचिये। शून्यता में जाईये, अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुँच गये, तो अगला कदम वो है, जहां आपको विभिन्न मन्त्र, विभिन्न शक्तियाँ दिखाई देंगी, वो सभी जागृत होंगी।